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कोई कहता धर्म प्रबल है
कोई कहता छल – प्रपंच
कहता हूँ मैं धर्म हीन
छल – प्रपंच संबल है ………………… !!
धर्म आधार देवगण भी
हैं छल – प्रपंच से विजयी हुए
यह पूछ महाभारत से
या फिर रामायण से …………………. !!
कहते हैं ये चीख – चीख
छल – प्रपंच किया था देवों नें
विजय देव की हुई नहीं
छल – प्रपंच विजय हुआ था ………… !!
कुरुक्षेत्र का मैदान यह देखो
कर्ण पडा था भूमि पर
था कहाँ धर्म, वो कहाँ थी नीति
था विवश कर्ण जब दलदल में ……… !!
पड़े थे भीष्म वाण – शय्या पर
सम्मुख शिखंडी था खडा
था अर्जुन का सर क्यों झुका हुआ
थी क्यों मुस्कान कृष्ण के होठों पर….. ??
खेल कृष्ण का था ये सारा
माया रची थी उसनें
कहो विजयी हुआ कौन था
कृष्ण या उसकी माया …………………… ??
पत्थर का यह सिन्धु – सेतु
कहता कथा पुराना है
हुआ राम – रावण युद्ध था
विजयी राम हुआ था …………………… !!
होड़ मची थी देवों में
वध रावण का करने को
फिरभी अडिग खड़ा था रावण
गिरा था भाई के धोखे से …………….. !!
थे क्यों बिभीषण अश्रु में डूबे
थी क्यों मुस्कान राम के होठों पर
कहो विजयी हुआ कौन था
धर्म अथवा छल – प्रपंच ………………. !!
हैं फिर कहते क्यों ये देव
धर्म की सदा जय है
“धर्म – धर्म” अरे ! धर्म क्या
इसके पीछे भी “माया” है …………….. !!
हैं कहते जब इतिहास यही
वो छल से विजयी हुआ है
कहो फिर हुआ कौन प्रबल
धर्म अथवा छल – प्रपंच ……………… ??
उत्पल कान्त मिश्र
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