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साजन मोहे पीहर छोड़े चले हैं बिदेस री…… !!

दास्तां - ए - नादां
दास्तां - ए - नादां
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इस मंच पर जो प्रोत्साहन आप सबों से अबतक मिला उससे प्रेरित हो एक और रचना आपके समक्ष प्रस्तुत करनें की इज्जाजत चाहता हूँ ! ये रचना मेरे लिए प्रयोगात्मक है, और आप सबों की प्रतिक्रया की अभिलाषी है !

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साजन मोहे पीहर छोड़े चले हैं बिदेस री
सासू रोवे आंसू पोछें, बोले न कछु और री …… !!

बादर अईहें सावन – भादो करिबो का हम खेल री
अँखियाँ झर – झर अबहीं बरसें, समझें नाहीं पीर री …….. !!

रोवत – रोवत अँखियाँ सूजीं, कहैं ना मैं सोयी री
बैरी निंदिया, साजन संग ही, गयी हैं बिदेस री ….. !!

चूड़ी – बिंदिया भावे नाहीं, लगे सब बिदेह री
काहे पहरूं सोना – चांदी, देखिहें हमका कौन री ……. !!

गाभिन गइया बछिया दीहें, ननद कहे देख री
हे पीर अपनी कासे बोलूँ, सखी न संदेस री ……. !!

बाबुल मोसे अँखियाँ मीचें बड़े सब निर्मोह री
बोलो मइया हमका भेजें पिया घर बिदेस री …….. !!

उत्पल कान्त मिश्र “नादाँ”
मुंबई

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