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कोई गाँव जलाता है किसी का दिल दहलता है……….!!

दास्तां - ए - नादां
दास्तां - ए - नादां
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कोई गाँव जलाता है किसी का दिल दहलता है
हयुले में हर एक लेकिन खुदा का नूर लगता है !!!

    जमीन पर जो भी आएगा कभी आंसू बहायेगा
    जफ़र – ओ – कातिलों में भी मचलता दिल धड़कता है !!!

अजब सी है कहानी ये कहाँ पे ले के जाती है
वहीँ पर जिंदगानी है जहाँ सपना उजड़ता है !!!

    तुझे हो क्यों पता “नादां” बशर के दर्द हैं कितनें
    कहीं पर चाँद होता है कहीं सूरज निकलता है !!!

उत्पल कान्त मिश्रा “नादां”

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