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गरीबी – रेखा

दास्तां - ए - नादां
दास्तां - ए - नादां
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राह पर
वो बुड्ढा
फटी चप्पलों से उंगलियाँ निकालकर
मिट्टी को नाख़ून से कुरेदता
जैसी जमीन ही फाड़ डालेगा
वैसी ही, सिर्फ नाखून से
और हाथ में पकड़ी लाठी से
उसी जमीन को ठोकता
ठक – ठक, ठाक, धुप
साला …….
इ – हू ठसे हई, का निकली इसे
अबहू फसल वेसी ही होए
खैर ………
कम अज कम इस बरस
बुड्ढा गरीबी रेखा से ऊपर तो है ….. !!

    उत्पल कान्त मिश्र “नादाँ”

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